सनातन संगम न्यास

भारतीय संस्कृति के सनातन मूल्यों के संरक्षण, संवर्धन, प्रचार, प्रसार एवं विभिन्न सनातन मूल्यों को मानने वाले मतों के समन्वय हेतु सनातन संगम न्यास की स्थापना की गई है।


प्रस्तावना

भारतीय संस्कृति विश्व की महानतम संस्कृति है। इस संस्कृति के आधारभूत तत्व प्रेम, करुणा, मैत्री, समानता, सद्भावना एवं समन्वय हैं। कोई व्यक्ति ईश्वर को मानता है अथवा नहीं मानता, यदि ईश्वर को मानता है तो साकार ईश्वर को मानता है अथवा निराकार ईश्वर को मानता है, यदि साकार ईश्वर को मानता है तो एक ईश्वर को मानता है अथवा अनेकों ईश्वर, देवी-देवताओं को मानता है, इन सब बातों से इस संस्कृति पर कोई अंतर नहीं पड़ता। इस संस्कृति के अंतर्गत व्यक्ति को विचारों की पूर्ण स्वतंत्रता है। सभी एक दूसरे को प्रेम-करूणा-मैत्री-समानता-सद्भावना एवं समन्वय के भाव से स्वीकार करते हैं। इसे ही सनातन संस्कृति कहते हैं।


संसार में कुछ भी नित्य नहीं है सब कुछ अनित्य है। इस ही प्रकार समाज में भी परिवर्तन होते रहते हैं। जब समाज में कुछ नकारात्मक भाव अधिक आ जाते हैं तब कोई ना कोई महापुरुष उन नकारात्मक भावों में सुधार करने के लिए आता है। जब सनातन परंपराओं को समाज के कुछ लोगों द्वारा अपने हितों को साधने के लिए अपने ही ढंग से परिवर्तित एवं परिभाषित करने का प्रयास किया गया तो तथागत गौतमबुद्ध और महावीर स्वामी जैसे गुरु-मुनि हमारे मध्य आए और उन्होंने हमें उचित राह दिखाई।


एक समय यह भी आया जब यह दिखाई देने लगा था कि सनातन संस्कृति सदैव के लिए इस धरा से मिट जाएगी। ऐसे समय आदि शंकराचार्य एवं अनेकों गुरु हमारे मध्य आए जिन्होंने हमें जागृत करने का प्रयास किया। गुरु नानक द्वारा एवं अन्य गुरुओं द्वारा भी जन-सामान्य को जागृत किया गया। गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह जी एवं गुरु पुत्रों द्वारा इस सनातन संस्कृति को बचाने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया गया। जातिवाद की अति हो जाने पर स्वामी दयानन्द ने लोगों को जाति के चक्रव्यूह से निकालने का प्रयत्न किया और साकार ईश्वर के स्थान पर एक निराकार ईश्वर की अवधारणा को उचित बता कर जन-सामान्य को चेताया।


हम यह नहीं समझ पाए कि उपरोक्त वर्णित महापुरूषों एवं अन्य अनेकों अवर्णित संतों, महात्माओं एवं गुरूओं ने सनातन संस्कृति में तत्समय आए विकारों में ही सुधार कर सनातन संस्कृति का संरक्षण एवं पोषण किया। उनकी सनातन संस्कृति को विभाजित करने की कभी सोच नहीं थी। इसे विभाजित तो हमारी विकृत राजनीतिक सोच ने अपने निजी स्वार्थों के लिए किया।

सनातन संस्कृति की प्रेम-करूणा-मैत्री-समानता-सद्भावना एवं समन्वयवादी तथा शाश्वत सोच को जीवित रखने के लिए इस सनातन संगम न्यास की स्थापना की गई है। इस न्यास के अन्तर्गत हिन्दू, जैन, सिख एवं बौद्ध मतावलम्बी न्यासी एवं सदस्य रहेंगे।

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